खबर है कि एसर तथा आसुस नेटबुक ने नेटबुक निर्माण बन्द करने की घोषणा कर दी है। अधिकतर दूसरी कम्पनियाँ पहले ही नेटबुक बनाना बन्द कर चुकी हैं। इन दोनों द्वारा अपने मौजूदा उत्पाद खपाने के बाद नेटबुक मार्केट स्वतः खत्म हो जायेगी।
नेटबुक सबसे पहले २००७ में लैपटॉप के छोटे, पोर्टेबल तथा सस्ते विकल्प के रूप में सामने आयी थी। यह काफी लोकप्रिय हुयी, यात्रा में रहने वालों के लिये यह पोर्टेबल कम्प्यूटिंग का सर्वश्रेष्ठ जरिया थी। २००९ के आसपास नेटबुक की लोकप्रियता चरम पर थी। सैमसंग, ऍचपी, डॅल, एसर, आसुस तथा तोशिबा आदि सभी प्रमुख कम्पनियों ने अपने नेटबुक मॉडल निकाले। आसुस ईपीसी, ऍचपी मिनी, डॅल मिनी आदि लोकप्रिय नेटबुक मॉडल थे। १० इंच स्क्रीन वाली नेटबुक्स में आमतौर पर इंटैल का ऍटम प्रोसैसर होता है जो परफॉर्मेंस के लिहाज से तो हल्का है पर बैट्री लाइफ अच्छी देता है। सामान्य लैपटॉप के दो-ढाई घंटे की अपेक्षा नेटबुक की बैट्री लगभग पाँच-छह घंटे चलती है। छोटी स्क्रीन से जहाँ पोर्टेब्लिटी मिलती है वहीं कुछ कामों में समस्या भी होती है। नेटबुक का मुख्य उपयोग बेसिक कम्प्यूटिंग कार्य, ऑफिस ऍप्लिकेशन्स तथा सर्फिंग है।
२०१० में आइपैड तथा दूसरे टैबलेट के आने से नेटबुक की लोकप्रियता तथा बिक्री कम होनी शुरु हुयी। सामान्य उपयोक्ता को किसी पोर्टेबल डिवाइस पर इंटरनेट सर्फिंग तथा वीडियो देखने आदि ही करना होता है, इसलिये टैबलेट धीरे-धीरे नेटबुक का स्थान लेने लगे। ये हल्के और छोटे होने से नेटबुक से अधिक पोर्टेबल हैं तथा इनमें सिम कार्ड द्वारा इंटरनेट सुविधा भी अन्तर्निहित है। साथ ही टच द्वारा संचालन अनुभव को ज्यादा सहज बनाता है। जिन प्रयोक्ताओं को विण्डोज़ वाली विशिष्ट ऍप्लिकेशनों की आवश्यकता थी, मजबूरी में उन्होंने इसका उपयोग जारी रखा। साथ ही शुरुआती एक-दो साल टैबलेटों की कीमत अधिक होने से भी नेटबुक बाजार में बनी रही। लेकिन २०१२ में कई सस्ते टैबलेटों के आने से लोग टैबलेट खरीदना बेहतर समझते हैं।
दूसरी ओर विण्डोज़ ८ युक्त टैबलेट आने से विण्डोज़ वाले सॉफ्टवेयर ऐसे टैबलेट पर भी उपलब्ध हैं। हालाँकि अभी ये महँगे हैं पर एकाध साल में सभी की पहुँच में होंगे। ये टैबलेट कम प्रोसैसिंग क्षमता वाले ऍटम प्रोसैसर के साथ-साथ अधिक क्षमता वाले कोर i3, i5 आदि प्रोसैसरों में भी उपलब्ध हैं। इनमें कीबोर्ड डॉक लगाकर इन्हें लैपटॉप (या कहिये नेटबुक) जैसा रूप भी दिया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो ये कम्प्यूटर वाले अधिकतर सामान्य काम करने में सक्षम हैं। इसके अतिरिक्त अल्ट्राबुक के रूप में हल्के, पोर्टेबल लैपटॉप का एक और विकल्प मिल गया है। जिनका ज्यादा प्रोसैसिंग क्षमता की आवश्यकता हो वे इन्हें प्रयोग कर सकते हैं। इस सब को देखते हुये भविष्य में भी नेटबुक की आवश्यकता समाप्त हो गयी है।
फिलहाल इंटैल अब अपने ऍटम प्रोसैसरों को विण्डोज़ ८ वाले टैबलेटों में खपा रहा है। वह इनके सुधरे संस्करण पर भी काम कर रहा है जो कम बैट्री खाने के बावजूद बेहतर प्रोसैसिंग दे सकें। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार नेटबुक के पतन के बावजूद इस फॉर्म फैक्टर ने टैबलेट की स्वीकार्यता बढ़ाने तथा अल्ट्राबुक के उद्भव में अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की है।
मेरे पास ऍचपी मिनी नेटबुक है (यह लेख भी इसी पर लिखा गया है) जिसे मैंने २०११ में अपने दस साल पुराने डैस्कटॉप को रिप्लेस करने के लिये खरीदा था। ब्लॉगिंग, सर्फिंग जैसे सामान्य कामों के अलावा मैंने अपने कई सॉफ्टवेयर टूल तक इसी पर बनाये। इसकी पोर्टेब्लिटी मुझे अब भी प्रिय है, बिस्तर में चलाओ या ट्रेन में यात्रा में या अपने बैग में डालकर स्कूल ले जाओ। हालाँकि अब टचस्क्रीन टैबलेटों के जमाने में और ज्यादा पोर्टेब्लिटी की इच्छा होने लगी है। टाइप का काम करते समय तो ठीक लेकिन केवल रीडिंग मोड में (सर्फिंग, वीडियो देखना आदि) में लगता है जैसे काश इसका कीबोर्ड अलग हो सकता। इसके अतिरिक्त ग्राफिक्स तथा डैवलपमेंट आदि जैसे कार्यों में इसकी कमियों के कारण समस्या आती है। कुछ दिन पहले मैंने इसे बेचकर गम्भीर काम के लिये दूसरा लैपटॉप और हल्के-फुल्के काम के लिये टैबलेट लेने का सोचा तो इसकी कीमत इतनी कम लगायी गयी कि मैंने इरादा बदल दिया। साथ ही विण्डोज़ ८ वाले टैबलेट अभी महँगे हैं, उम्मीद है अगले साल तक पहुँच में होंगे, तब तक कम्प्यूटर वाला इसी से काम चलेगा बाकी इस साल में कोई ऍण्ड्रॉइड वाला टैबलेट या फैबलेट लिया जायेगा।
एक प्रसंग याद आया, मेरी नेटबुक को देखकर एक मित्र ने पूछा – क्या यह अल्ट्राबुक है जिसका आजकल टीवी पर विज्ञापन आता है?
मैंने कहा – नहीं, यह बीते जमाने की अल्ट्राबुक है।
RIP Netbooks (2007-2013)
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